Tuesday, November 8, 2016

Agnepath - A poem by Shri.Harivanshrai Bachchan



 “अग्निपथ”


वृक्ष हो भले खड़े, हो घने हो बड़े, एक पत छाव की |
मांग मत, मांग मत, मांग मत ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||



तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी |
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||



ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से |
लथपथ, लथपथ, लथपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||



                                               श्री हरिवंश राय बच्चन  

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